- हमारे जीवन में ऐसे कई अवसर आते हैं जब हम स्वयं को रूका हुआ सा अनुभव करते हैं। ऐसे समय पर हम एक मार्गदर्शक या आध्यात्मिक गुरु चाहते हैं जो हमारी उलझनों को दूर कर सकें और हमें सही मार्ग दिखा सकें। गुरु का मार्गदर्शन अन्य स्रोत (जैसे पुस्तक आदि) से प्राप्त ज्ञान से कई गुणा अधिक प्रभावकारी होता है। तो आईये, सच्चे आध्यात्मिक गुरु की खोज से जुड़े हुए सभी पहलूओं को समझते हैं।
आध्यात्मिक गुरु किसे कहते हैं?
जिस किसी से हम कुछ ज्ञान या कौशल सीखते हैं, उसे गुरु कहते हैं। परन्तु, जो हमें आत्म-अनुभूति एवं ईश्वर-अनुभूति के मार्ग पर चला सकें, उन्हें आध्यात्मिक गुरु कहते हैं। सामान्य शब्दों में, आध्यात्मिक गुरु आपकी जीवन यात्रा का पथ-प्रदर्शक होता है। वह आपके सत्य स्वरुप एवं आतंरिक सद्गुणों (जैसे आनंद, प्रेम, शान्ति, गौरव) का अनुभव करने में आपका सहयोगी होता है। वह आपको ऐसा सक्षम बना देता है कि आप अपनी सांसारिक जिम्मेदारियों को भली-भांति निभाते हुए परम सत्ता या ईश्वर की अनुभूति करते रहें।
सुविधा के लिये इस लेख में ‘आध्यात्मिक गुरु’ के लिये मैं ‘गुरु’ शब्द का प्रयोग करूँगा।
मुझे गुरु की जरूरत क्यों है?
कुछ क्षणों के लिये रूकें, विचार करें और फ़िर अपना उत्तर पायें। गुरु की आवश्यकता के कुछ कारणों का मैं यहाँ वर्णन कर रहा हूँ।
- आध्यात्मिक उन्नति के लिये आपको अपनी वर्तमान स्थिति का सही आकलन करना अनिवार्य होता है। और तत्पश्चात आगे की यात्रा का मार्ग निर्धारित करना होता है। यदि आपके साथ एक अनुभवी सिद्ध गुरु हों तो यह कार्य सरल हो जाता है। अगर कोई किसी स्थान तक पहुँच चुका है तो वह आपको भी वहाँ तक पहुँचने का मार्ग दिखा सकता है। यह बात जीवन के सभी क्षेत्रों में लागू होती है, पर आध्यात्मिक उन्नति के संदर्भ में इसकी विशेष प्रासंगिकता है।
- आपको अपनी आध्यात्मिक यात्रा में सूक्ष्म चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। उन्हें पहचानने और सुलझाने के लिये आपको सहायता की आवश्यकता पड़ती है। ऐसे में गुरु बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इससे आपकी शक्ति और समय बच जाते हैं, जो अन्यथा अकेले के संघर्ष में व्यर्थ हो जाते।
- एक सच्चे गुरु आपकी अंतरात्मा से जुड़ कर कर्मबंधनों को खोल सकते हैं। परन्तु, एक साधारण साधक के लिये अपने आतंरिक रुकावटों को स्वयं ही पहचानना और दूर करना अत्यंत दुष्कर होता है।
- आपको गुरु एक मार्गदर्शक, सहारा और मित्र के रूप में उपलब्ध होते हैं। आप अपने जीवन की सफलतायें और सीखें (भूलें), विशेषकर, आध्यात्मिक, उनके साथ साझा कर सकते हैं। आप उनके विवेकपूर्ण परामर्श से अत्यन्त लाभान्वित होते हैं।
- गुरु और शिष्य के बीच एक गहरा आध्यात्मिक सम्बन्ध विकसित हो जाता है। शिष्य गुरु से अपनी सभी आध्यात्मिक आवश्यकताओं के लिये सहायता प्राप्त कर सकता है। गुरु सांसारिक जिम्मेदारियों को अच्छे से निभाने में भी मार्गदर्शन करते हैं।
- गुरु से प्राप्त दीक्षा मंत्र अत्यंत शक्ति-संपन्न होता है। उस मंत्र में सिद्ध गुरुओं की पीढ़ियों से चली आ रही सूक्ष्म शक्ति समायी रहती है। दीक्षा मंत्र का नियमित जाप साधक के आध्यात्मिक उन्नति पर अति गहरा एवं चमत्कारी प्रभाव डालता है। उस मंत्र के जाप का ऐसा प्रभाव तभी होता है जब उसे गुरु द्वारा दीक्षा में प्राप्त किया गया हो।
- ऐसा माना जाता है कि गुरु-शिष्य परंपरा स्वयं परमात्मा द्वारा प्रारंभ की गई है। और यह उनका सभी सच्चे साधकों के प्रति एक दिव्य उपहार है। अव्यक्त ईश्वर ने व्यक्त गुरु की व्यवस्था करके साधकों का पथ सुगम और सरल कर दिया है। यह गुरु-शिष्य परंपरा दिव्य-कृपा पूर्ण है। और इसी कारण से सभी युगों एवं सभी धर्मों में इस परंपरा ने अनेक सिद्ध महापुरुषों को जन्म दिया है। इसलिये, किसी प्रबुद्ध गुरु का शिष्य बन कर आप दिव्य ईश्वरीय कृपा भी प्राप्त करते हैं।
सच्चे और नकली गुरु के बीच मैं कैसे अंतर करूँ?
वर्तमान में, अनेक लोग गुरु होने का दावा करते हैं। और बड़ी संख्या में उनके अनुयायी भी हो सकते हैं। तो भी हमें गुरु बनाने से पहले बहुत सावधानी पूर्वक अवलोकन एवं निरीक्षण करना चाहिये। हमारे शास्त्रों और सच्चे संतों ने सच्चे गुरु (सतगुरु) के गुण या लक्षणों का वर्णन किया है। ध्यान पूर्वक अवलोकन करने के पश्चात् इन लक्षणों की उपस्थिति होने पर ही हमें गुरु बनाना चाहिये। एक सच्चा गुरु निम्नलिखित गुणों को अपने अन्दर सदा धारण किये रहता है:-
- आत्म-साक्षात्कार एवं ईश्वर की अनुभूति प्राप्त
- आत्म-संयम: अपने इन्द्रियों पर सम्पूर्ण नियंत्रण
- औरों के धन में कोई रुचि न रखना
- विपरीत लिंग के व्यक्ति की ओर झुकाव न होना
- हर व्यसन से मुक्त
- शिष्यों या अनुयायिओं की संख्या बढ़ाने का इच्छुक नहीं
- भौतिक सुख-सुविधाओं से उदासीन
- सभी की सेवा करने की प्रबल भावना रखना
- सबके प्रति सम भाव; कोई भेदभाव या पक्षपात नहीं
- बुद्धिमान व ज्ञानी होते हुए भी अत्यंत सरल और निर्दोष
- दयालु एवं करुणामय
किसी गुरु का शिष्य बनने में शीघ्रता न करें। आपको उनके साथ कुछ समय बिता कर अच्छे से अवलोकन करना चाहिये। यह ध्यान से अनुभव करें कि विभिन्न परिस्थितियों में उनकी कैसी प्रतिक्रिया होती है और लोगों के साथ वे कैसा व्यवहार करते हैं।
मैं आपको एक सच्ची घटना के बारे में बताता हूँ। एक साधक था। उसे एक ज्ञानी, आत्म-विश्वासी एवं प्रभावशाली व्यक्ति मिला। उसे लगा कि उस व्यक्ति के रूप में उसे उसके गुरु मिल गये। उस व्यक्ति के पास कुछ गुप्त सिद्धियाँ थीं जिनके द्वारा वह किसी को सम्मोहित व वशीकार कर सकता था। वह किसी भी आध्यात्मिक विषय पर ऐसा धारा-प्रवाह बोलता था कि कई लोगों ने उसे सिद्ध समझा। इस साधक ने भी उसे अपना गुरु मान लिया। हालाँकि किसी प्रकार की विधिवत दीक्षा नहीं हुई। संयोगवश साधक को उस गुरु के समीप कुछ दिन रहने का अवसर प्राप्त हुआ। उस अवधि में उसे गुरु के व्यवहार को नजदीक से अवलोकन करने का मौका मिला। उसके उपदेश और व्यवहार में बहुत अंतर था। उदाहरण के लिये, वह धनी एवं संभ्रांत लोगों के लिये पक्षपाती था। महिला सहयोगियों के साथ वह अकेले में घंटों समय बिताता। उसकी अनेक सांसारिक महत्वाकांक्षायें थीं। गुरु में दोष होने के अतिरिक्त, साधक की अपनी आध्यात्मिक उन्नति भी नहीं हो पा रही थी। इस तरह उसे यह एहसास हुआ कि वह एक नकली गुरु के चंगुल में फंस गया था। फ़िर साधक ने उस व्यक्ति से अपने को अलग कर लिया। भगवान की कृपा से कुछ समय पश्चात् उसे एक सच्चे गुरु मिले जिनसे उसने दीक्षा ली।
नकली गुरुओं का मिलना बहुत सामान्य बात है। इसलिये, आपको कुछ न कुछ आध्यात्मिक साधना करते रहना चाहिये। ऐसा करने से आप स्वयं को सुरक्षित रख सकेंगे।
सच्चे गुरु की खोज कहाँ और कैसे करें?
ऐसा कहा जाता है और कईयों का ऐसा अनुभव भी है कि शिष्य गुरु को नहीँ ढूंढता; बल्कि, गुरु स्वयं शिष्य को ढूंढ लेते हैं। परन्तु, गुरु आपको अपने शिष्य के रूप में स्वीकार करें, इसके लिये आपको ‘तैयार’ होने की आवश्यकता होती है। अक्सर कुछ आतंरिक ग्रन्थियाँ गुरु-शिष्य मिलन में विलंब का कारण बनती हैं। या तो आपकी लगन तीव्र नहीं होती या कुछ पूर्व कर्म मार्ग की रुकावट बन जाते हैं। कारण चाहे जो भी हो, आपको चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। मार्ग साफ़ करने के अनेक तरीके हैं। आईये, मैं एक ऐसी विधि बताता हूँ जो मैंने स्वयं अपनाया था। यह बहुत ही सरल है, हालांकि इसमें सच्चाई और नियमितता चाहिये।
- जीवन में सच्चे गुरु को पाने की तीव्र लालसा और दृढ़ इच्छा शक्ति हो।
- अपने इष्ट देव/देवी या जिन्हें भी आप ईश्वर, परम सत्ता या ब्रह्मांड मानते हों, उन तक अपनी यह इच्छा पहुँचा दें।
- आप अपनी बात प्रभावकारी ढंग से पहुँचा सकते हैं। इसकी विधि है कि निम्नलिखित मंत्र को 108 बार प्रतिदिन, विशेषतः माला के मनकों द्वारा, जपें – “ॐ श्री गुरवे नमः”।
यदि आपको प्रतिदिन जाप करने में कठिनाई हो तो आप हर गुरुवार को जाप कर सकते हैं। गुरुवार का दिन विशेष कर गुरु को ही समर्पित माना जाता है।
आप अपनी इच्छा बताने के लिये भगवान शिव को चुन सकते हैं। भारतीय सनातन संस्कृति में उन्हें आदि गुरु माना जाता है। यदि आपके इष्ट कोई और हों तो आप उनके नाम या मंत्र का प्रतिदिन 108 बार जाप कर सकते हैं। जब तक मुझे मेरे गुरु नहीं मिले, मैं भगवान श्री राम के नाम की एक माला रोज जपता था।
इन मंत्रों या दिव्य, पावन नामों के जाप द्वारा आप स्वयं को अपने गुरु या ईश्वर के समीप अनुभव करेंगे। इसके साथ ही, आप अपने जीवन के सभी क्षेत्रों में असंख्य लाभ अनुभव करेंगे। मैं चाहता हूँ कि आप स्वयं इनका अनुभव करें, इसलिये मैं उन लाभों का वर्णन नहीं कर रहा हूँ।
विकल्पतः, आप अपने जीवन में ‘दैवी मार्गदर्शन’ की प्राप्ति के लिये ‘प्रार्थना’ कर सकते हैं। और आपके गुरु, जब आप पूर्ण रूप से तैयार हो जायेंगे, तब उपलब्ध हो जायेंगे।
अपनी खोज में धीरज रखें। आप विश्वस्त रहें कि आपकी तीव्र लगन एवं सतत साधना से आपको ईश्वर की कृपा अवश्य प्राप्त होगी। और प्रभु-कृपा से आपकी सच्चे गुरु की खोज निश्चित ही फलीभूत होगी।
क्या गुरु मिलन से पूर्व मुझे स्वयं को तैयार करना होगा? एक अच्छा शिष्य बनने की कुछ आवश्यक शर्तें हैं क्या?
हाँ, बिल्कुल। आपमें विनम्रता, समर्पणमयता, श्रद्धा, निष्काम भक्ति, कर्तव्यनिष्ठा एवं ईश्वर-अनुभूति की उत्कट प्यास होना अनिवार्य है।
आपको निश्चय ही विनम्रता को धारण करना होगा और उसे निरंतर बढ़ाते जाना होगा। अहंकार ही किसी व्यक्ति की आध्यात्मिक उन्नति में सबसे बड़ी बाधा बनकर सामने आता है। अपने जीवन में गुरु का आह्वान करने का अर्थ है कि आप किसी को यह निमंत्रण और अनुमति दे रहे हैं कि वह आकर आपके अहंकार को नष्ट करे। जो किसी के आगे नहीं झुकता वह भी अपने गुरु के आगे अवश्य ही सिर झुकाता है। इस तरह अहंकार से मुक्त होने के लिये गुरु का होना अति आवश्यक है। और दिलचस्प बात यह है कि यही सबसे महत्वपूर्ण तैयारी एवं आवश्यक शर्त भी है।
मुझे सतगुरु की प्राप्ति हो गई है, यह आश्वासन कैसे हो?
आपकी अंतरात्मा या आतंरिक आवाज़ ही सर्वोत्तम निर्णायक है। आपकी आतंरिक अनुभूति ही आपको यह स्पष्ट बतायेगी कि जिसे आप अपने सच्चे गुरु के रूप में आकलन कर रहे हैं, वो सच में वैसे हैं या नहीं। मुझ पर भरोसा करिए – यदि आप अपने भीतर की आवाज़ सुनते हैं और उसके अनुसार चलते हैं तो आप सदा सही रहेंगे। कृपया इस आवाज को औरों के विचार या सुझाव द्वारा प्रभावित नहीं होने दीजिये। आप केवल अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनें तो कभी धोखा नहीं खायेंगे। ब्रह्मांड आपको जो-जो संकेत देता है उस पर अपना पूरा ध्यान दें। किसी के प्रभाव में होने के कारण इन संकेतों को अनदेखा न करें।
जब आप किसी सच्चे गुरु के समीप जाते हैं तो आपकी अंतरात्मा गहन शान्ति की अनुभूति करेगी। मन और इन्द्रियाँ शीतल हो जायेंगी। आपके अन्दर आनंद होगा। उनके शब्द सुनकर आप प्रसन्न और शांत हो जायेंगे। उन्हें देखते ही आपके अन्दर ख़ुशी की लहर उठने लगेगी।
सच्चे गुरु के मिलने तक की प्रतीक्षा अवधि में क्या करें?
याद रखें, अयोग्य गुरु के मिलने से अच्छा है कि आपके कोई गुरु न हो। जब तक आप व्यक्त रूप में अपने गुरु से नहीं मिलते तब तक ईश्वर ही आपके गुरु हैं। आप अपनी अंतरात्मा को ही अपना गुरु मान सकते हैं।
यह अनुभव करना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि किसी की आध्यात्मिक यात्रा एक जीवनकाल तक ही सीमित नहीं होती। बल्कि वह कई जन्मों तक चलती रहती है। इसलिये, वर्तमान जीवनकाल में यदि आप अपने गुरु से न भी मिलें तो भी इस अभूतपूर्व घटना की तैयारी करना लाभकारी ही है।
जब तक आप अपने सतगुरु से नहीं मिलते, आप अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिये शास्त्रों का स्वाध्याय कर सकते हैं। इसके लिये आप श्रीमद्भागवत् गीता या रामायण या ऐसी अन्य कोई भी पुस्तक जिसमें आपकी रूचि व श्रद्धा हो, पढ़ सकते हैं।
अपनी अंतरात्मा से संपर्क बनाये रखने के लिये और अंतर्ज्ञान प्राप्त करने के लिये ध्यान का अभ्यास करें।
गुरु प्राप्त होने के बाद क्या?
अपने गुरु को पाने और उनसे दीक्षा मंत्र मिलने के बाद आप गुरु-कृपा अनुभव करने लगते हैं। सदा कृपा प्राप्त होती रहे इसके लिये आपको जीवन पर्यन्त उनके बताये अनुसार साधना करनी चाहिये। गुरु-निर्देशों का पूरी सजगता से पालन करें।
जब कभी आपके गुरु आपकी आलोचना करें या शिक्षा दें तो अपने आपको धन्य एवं सौभाग्यशाली समझें। याद रखें कि आपके आध्यात्मिक प्रगति को तीव्र करने में गुरु का बहुत बड़ा योगदान होता है। इसलिये उनसे अपने सुधार के लिये जो कुछ भी ईशारा मिले उसे कृतज्ञता पूर्वक स्वीकार करना है।
सदा याद रखें कि गुरु-तत्व और परमात्म-तत्व एक ही है। और वह सर्वत्र एवं सदा विद्यमान है। आपको केवल उसे स्वीकार एवं अनुभव करना है।
आपकी आध्यात्मिक खोज और उन्नति के लिये मेरी ओर से शुभ-मंगल की कामनायें!