संयम रखने के 9 व्यावहारिक नुस्खे

हमने पिछले लेख में समझा है कि आत्म-संयम किन-किन बातों में और क्यों चाहिये। वर्तमान लेख में हम यह समझेंगे कि व्यावहारिक जीवन में किन युक्तियों से संयम रखा जा सकता है।

तो आईये, हम ऐसे 9 नुस्खों से परिचित होते हैं।

  1. जीवन में ऊंचा लक्ष्य अवश्य ही रखें।

लक्ष्य से सच्चा प्रेम हो तो एकाग्रता सहज आ जाती है। एकाग्रता हो तो व्यर्थ का परहेज (संयम) अति सरल होता है। आप अपने जीवन के लक्ष्यों को गंभीरता से लें और उनके प्रति ईमानदारी से प्रतिबद्ध रहें। यदि आप ऐसा करें तो संसार का कोई भी आकर्षण आपको आपके पथ से भला कैसे डिगा सकता है?

  1. समय का महत्व समझें।

आप जितनी गहराई से समय का महत्व समझते हैं उतना ही व्यर्थ बातों से अपने को बचा सकेंगे।

  1. स्थूल से सूक्ष्म नियंत्रण की ओर बढें।

अपने ऊपर संयम करना स्थूल स्तर से आरम्भ करें। बोलना, पकड़ना, चलना, मूत्र-त्याग और मल-त्याग – ये पाँच शारीरिक कर्म हैं। इन पाँचों कर्मों के करने वाली क्रमशः वाणी, हाथ, पैर, उपस्थ और गुदा – ये पाँच शक्तियाँ कर्मेन्द्रियाँ कहलाती हैं। सर्वप्रथम इन स्थूल कर्मेन्द्रियों को योग आसन के अभ्यास द्वारा वश में करना चाहिये।

आँखें, कान, नासिका, जिह्वा और त्वचा – ये पाँच ज्ञान के स्रोत्र अर्थात ज्ञानेन्द्रियाँ हैं। आँखें रूप-ज्ञान का, कान शब्द-ज्ञान का, नासिका गंध-ज्ञान का, जिह्वा स्वाद-ज्ञान का एवं त्वचा स्पर्श-ज्ञान का बुद्धि को बोध कराती है। ज्ञानेन्द्रियों को प्राणायाम द्वारा संयम में रखना चाहिये।

  1. प्राणायाम का अभ्यास करें।

प्राणों को वश में करने का नाम प्राणायाम है। प्राणों को अपने अधिकार में चलाने वाले मनुष्य का अधिकार उसके शरीर, इन्द्रियों एवं मन पर हो जाता है। प्राणायाम से मनुष्य स्वस्थ एवं नीरोग रहकर दीर्घायु तथा मन और इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर सकता है। मन का प्राण से घनिष्ठ सम्बन्ध है। मन को रोकना अति कठिन है, पर प्राण के निरोध तथा वशीकार से मन का नियंत्रण करना सुगम हो जाता है।

  1. मन को यथासंभव स्वच्छ रखें

मन के स्वच्छ होने से उसकी एकाग्रता बढ़ती है। मन की एकाग्रता से इन्द्रियों का वशीकार होता है। अर्थात् वे बहिर्मुख से अंतर्मुख हो जाती हैं। मन को स्वच्छ करने के लिये प्राणायाम, निःस्वार्थ सेवा (कर्मयोग) अथवा भक्ति में से आपको जो सरल लगे उससे काम लेना चाहिये।

  1. स्वयं को मन से अलग करके अनुभव करें।

अक्सर हमारा मन किसी न किसी इन्द्रिय के साथ एकरूप होकर किसी बाहरी प्रलोभन की ओर आकर्षित हो जाता है। जैसे, आँखों के साथ मिलकर किसी सुंदर रूप की ओर या जिह्वा के साथ होकर किसी स्वादिष्ट भोज्य पदार्थ की ओर अथवा कानों द्वारा किसी मधुर आवाज़ की ओर।

इन आकर्षणों पर विजय पाने के लिये आप स्वयं को मन से अलग अनुभव करने का अभ्यास करें। मन और अपने बीच एक दूरी बना लें। मन के साथ अपने आपको एकरूप करके न समझें। आप अलग सत्ता हैं और आपका मन एक अलग चीज है। ऐसा करने से आप मन के कारनामों को साक्षी होकर अनुभव कर सकेंगे।

  1. मन को टिकने के लिये एक केंद्र-बिन्दु दें।

देखिये, मन को कहीं टिकाने के लिये एक बिन्दु की जरूरत होती है। इसलिये, बाहरी आकर्षणों के स्थान पर आपको इसे कुछ और विकल्प देने होंगे जहाँ वह लगा रहे। कुछ विकल्प बिन्दु इस प्रकार के हो सकते हैं।

  • आपके इष्ट देव, भगवान, या आध्यात्मिक गुरु
  • आपका ऊँचा लक्ष्य या उद्देश्य
  • आपका आतंरिक केंद्र (अंतरात्मा)

आंतरिक केंद्र कैसे बनायें?

अपने शरीर के भीतर ही (ह्रदय में या नाभि-केंद्र में, अथवा आज्ञा चक्र में) मानसिक रूप से एक लंगर (सहारा/एंकर) बनायें। इसे अपने ऊच्च स्वरुप (हायर सेल्फ़) या परमात्मा का आसन समझें। विशेषकर सुबह में और सारे दिन में भी बीच-बीच में इससे संपर्क करें और शान्ति, आनंद, प्रेम, स्थिरता एवं संतुलन अनुभव करते रहें। अपने मन को इस बात की आदत लगा दें कि वह प्रतिदिन, जितनी बार हो सके, आपके इस आतंरिक-केंद्र से संपर्क करता रहे।

  1. भूल हो जाय तो थोड़ा विचार अवश्य करें।

जब भी आपके संयम का व्रत टूटता है तो निराश न होयें। थोड़ा विचार अवश्य करें कि भूल कहाँ हुई और आगे से क्या ध्यान रखकर आप विजयी बन सकते हैं। दृढ़ संकल्प करें। साथ-साथ भगवान से दिल से प्रार्थना करें कि वे आपको आत्म-बल प्रदान करें जिससे आप भविष्य में ऐसी परिस्थिति आने पर अपना आपा न खोएं।

  1. जिसका नुकसान हुआ हो, उससे क्षमा याचना करें।

हम जब किसी मर्यादा का उल्लंघन करते हैं तो अवश्य ही किसीको दुःख पहुंचाते हैं अथवा किसीका कुछ नुकसान करते हैं। इसलिये, जितनी जल्दी हो सके, अपनी भूल का एहसास करके सामने वाले से क्षमा याचना अवश्य करें। इससे अगली बार आप पहले से ही सावधान रहेंगे। क्योंकि आपको पता होगा कि भूल हुई तो उनसे क्षमा याचना करनी होगी। हम सब जानते हैं कि किसी के आगे झुकना कितना सरल या कठिन होता है।        

इन नुस्खों के प्रयोग द्वारा अपने आत्म-अनुशासन का अनुभव बढ़ाते रहिये। आत्म-संयम सीरीज़ के अगले लेख में हम संयमी व्यक्ति के कुछ लक्षण देखेंगे। और एक दिलचस्प कहानी से भी कुछ सीखेंगे।

अपना ख्याल रखिये। नमस्ते!

इस लेख को अंग्रेजी में यहाँ पढ़ें। 

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