संयमी व्यक्ति के क्या लक्षण होते हैं?
संयमी व्यक्ति भावनाओं के प्रवाह में नहीं बह जाता। उसमें शीतलता होती है। उसमें अक्रोध, सरलता, संतोष, श्रद्धा, सत्यनिष्ठा, परोपकार की भावना, जितेन्द्रियता, धीरता, सुशीलता, सदाचारिता, प्रसन्नता आदि सद्गुण स्वतः आ जाते हैं। वह सभी प्राणियों को सुख पहुंचाता है। उसके मन में ईर्ष्या या द्वेष वश क्षोभ पैदा नहीं होता है। इसलिये जीवन में वह प्रसन्नता एवं निर्भयता का अनुभव करता है। जितेन्द्रिय संयमी पुरुष सच्चे अर्थों में निर्द्वन्द्व हो जाता है। उसे व्यर्थ की चिंता नहीं होती। अतः आराम से गहरी नींद सोता है और अपने कर्तव्य पालन में सदैव तत्पर रहता है।
जब संयम की बात चले तो भगवान श्री राम का स्मरण हो आना स्वाभाविक है क्योंकि उन्होंने संयम और अनुशासन के श्रेष्ठतम आदर्श स्थापित किये। चूँकि उन्होंने कष्ट सहकर भी हर तरह की मर्यादा का सहर्ष पालन किया इसलिये वे मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाये। भारत के इतिहास में संयमी पुरुष का श्रेष्ठतम उदाहरण देखना हो तो आप मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के जीवन को याद कर उनसे प्रेरणा प्राप्त कर लें।
रास्ते के प्रलोभन – एक दिलचस्प कहानी
एक राजा था। उसने एक बार घोषणा कर दी कि जो लोग उसके महल में दस घड़ी के भीतर आ जायेंगे, उनको वह अपना सारा खज़ाना बाँट देगा और जो नहीं आ सकेंगे, उन्हें राज्य से निकाल देगा।
शहर से राजमहल तक के रास्ते पर भोग-विलास के साधनों का प्रबंध कर दिया गया। सभी खाने-पीने की दुर्लभ-सुस्वादु सामग्रियाँ उपलब्ध थीं। जगह-जगह नाच-गाने की मंडलियाँ और अनेक प्रकार के मनोहर दृश्य थे।
शहर के लोग राजमहल की ओर चले। अधिकांश लोग या तो खाने-पीने में लग गये, नाच- तमाशा देखने लगे या अन्य लुभावनी आसक्तियों में पड़कर उलझे रहे और निश्चित समय पर महल के भीतर पहुँच नहीं सके। वे लोग सोचते रहे, “जरा इन व्यवस्थाओं का भी तो मजा उठा लें। महल में पहुँचने के लिये काफ़ी समय है। जरा तेज चलेंगे और समय रहते महल के भीतर पहुँच जायेंगे।” वे इस प्रकार लिप्त हुए कि समय रहते होश न आया। कुछ ज्ञानी मनुष्य भी थे। उन लोगों ने सोचा कि पहले राजा के पास पहुँच जायें, राजकोष पा लें, फिर देखा जाएगा। राज्य की अपार निधि के सामने इन तुच्छ वस्तुओं की क्या बिसात? यही सोचकर वे सीधे महल की ओर बढ़ते गये। राजा का स्वत्व उन्हीं चंद विवेकी और ज्ञानीजनों में बंट गया।
परमात्मा ही राजा है। संसार एवं संसार की वस्तुएँ आसक्ति हैं, जो भगवान के निकट पहुँचने के मार्ग में बाधास्वरुप स्थित हैं। अज्ञानी इसमें फँस जाते हैं। ज्ञानी इससे बचकर सीधे भगवान के पास पहुँचने का प्रयास करते हैं। संसार तो क्षणभंगुर है। इसमें मनुष्य आते-जाते रहते हैं। सम्पूर्ण कर्मों को भगवान को अर्पित करना और भगवत्प्रेम की लहर में डूबे रहना ही भक्ति है।
कहानी कैसी लगी?
आत्म-संयम सीरीज़ के अगले और अंतिम लेख में हम मन और इन्द्रियों के संयम पर कुछ ज्ञान समझेंगे।