जो सही-गलत का भेद जना दे उसे ही धर्म कहते हैं।
जो करने से पहले ही कर्म का मर्म बता दे उसे ही धर्म कहते हैं।।
उसे धर्म न समझो जो हमें एक-दूजे से अलग करता है।
धर्म वो है जो अपने अंदर असीम-अपार बल भरता है।।
सही की प्रेरणा और गलत की ना करना ही धर्म का काम है।
मर्यादा पर चलने वाले का ही नाम धर्म-धुरन्धर श्री राम है।।
धर्म बाहर नहीं, अपने भीतर की आवाज़ हो।
जिस पर चलने से हम पर सारे संसार को नाज़ हो।।
जिसे क्षणभंगुर आनंद-स्वार्थ के लिये किया, उसे धर्म न कहो।
धर्म वही है जिस पर चल तुम और संसार युगों तक सुख-शान्ति से रहो।।
धर्म का ही दूसरा नाम कर्तव्य है।
यही हमारा मार्ग और यही गंतव्य है।।
भारतीय संस्कृति में हर पद का धर्म, हर सम्बन्ध का अनुशासन है।
तभी तो इसके सत्य, सनातन होने का ऐसा अद्भुत गायन है।।
हर कोई, चाहे वह हिन्दू, मुस्लिम, सिख या ईसाई हो।
जीवन सार्थक तभी है जब उसने धर्म-मर्यादा अपनाई हो।।
जिस पावन धरा ने धर्म-परायण ऋषि-मुनियों, संतों को है जन्म दिया।
हमने भी तो उसी भारत माँ का है दूध पिया।।
तो आओ, हम भी धर्म-धुरी पर अडिग रहें, संकल्प करें।
अपना, भारत और विश्व का सुन्दर काया-कल्प करें।।
धर्म पर बहुत अच्छी कविता है। धर्म पर चलने से सुख शांति संभव है।
उत्साह बढाने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद!